- ये तस्वीर संसद भवन के उद्घाटन समारोह की तस्वीर है। भारत की एक बहुत बड़ी आबादी के लिए ये एक आम तस्वीर है लेकिन कुछ दूरदर्शी ही समझ सकते हैं कि ये तस्वीर भारतीय लोकतंत्र के धर्मनिरपेक्षता के आदर्श का विघटन प्रदर्शित कर रही है।
नीचे की तस्वीर में कतार में खड़े ये जंगली जैसे दिखने वाले लोग न तो सरकार के हिस्सा हैं और न ही जनता के प्रतिनिधि हैं बल्कि ये सारे पोंगा पंडित हिन्दू धर्म / ब्राम्हण धर्म के ठेकेदार हैं, ये सभी एक ही धर्म से हैं। इससे पता चलता है कि भारतीय संविधान भले ही धर्मनिरपेक्षता की बात करता है लेकिन वर्तमान मनुवादी सरकार के नज़र में संविधान, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का कोई महत्व नहीं है।
किसी भी देश का संसद उस देश के लोकतांत्रिक आदर्श का मूर्त रूप होता है। जो लोकतंत्र समानता और धर्मनिरपेक्षता की बात करता है उसी के संसद के उद्घाटन समारोह में किसी विशेष धर्म के ही ठेकेदारों को बुलाना BJP के भविष्य की नीतियों को भी प्रदर्शित करता है।
संविधान के अनुसार उद्घाटन समारोह में भारत के हर धर्म, हर जाति, हर समुदाय के प्रतिनिधियों को समान रूप से बुलाना चाहिए था क्योंकि ये देश, ये संविधान, ये लोकतंत्र और ये संसद देश के सभी धर्मों और जातियों का है, न कि सिर्फ हिन्दुओं का।
ये संकेत है कि लोकतांत्रिक भारत जल्द ही हिन्दू राष्ट्र में बदलने वाला है, और सच कहूँ तो मैं भी भारत को हिन्दू राष्ट्र बनते हुए देखना चाहता हूँ, मैं हिन्दू राष्ट्र में गैर सवर्ण हिन्दुओं को सवर्णों से लात खाते हुए, उनकी गंदगी साफ करते हुए, उनकी गुलामी करते हुए देखना चाहता हूँ। क्योंकि ये तय है कि जब तक गैर सवर्ण हिन्दू सवर्णों से दिन रात लात नहीं खाएंगे तब तक ये अपने आप को हिन्दू समझते रहेंगे, इसलिए एक बार भारत का हिन्दू राष्ट्र बनना बहुत जरूरी है।
ख़ैर इस तस्वीर के लिए आखिर में इतना ही कहूँगा की, ये मनुवादी भारत के आरम्भ का प्रतीक है।
शुभम निगम
राजनैतिक दार्शनिक एवं राजनीतिक दर्शन छात्र, इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय
( उपर प्रकाशित शब्द लेखक वा वक्ता के अपने विचार हैं)